“विश्व परिवार दिवस”

15 मई यानि की विश्व परिवार दिवस । इस दिन को पूरा विश्व परिवार दिवस के रूप में मनाता है। “वसुधैव कुटुम्बकम ” हमारी संस्कृति पूरी धरती में रहने वाले लोगों को एक परिवार मानती हैं।इसी प्रकार हमारी देवताओं की भूमि उत्तराखंड के गांवों मे किसी समय मे पूरे परिवारएकल परिवा के सदस्य एक साथ रह कर जीवन- यापन करते थे क्योंकि कृषि के कार्य के लिए ज्यादा से ज्यादा सदस्यों की जरूरत होती है । लेकिन आजकल लोग स्वतंत्र रहना पसंद करते है ताकि वे आजादी के साथ अपना व अपने परिवार को समय दे सके। पर
व्यक्ति चाहे कितनी भी तरक्की कर ले कितना भी पैसा कमा ले ,कितने भी उच्चे पद मे पहुंच जाये लेकिन उसे प्रेम व अपनत्व अपने ही परिवार मे मिलता है।परिवार दो प्रकार के होते है एकल परिवार व दूसरा सयुंक्त परिवार । सयुंक्त परिवार मे दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, भय्या-भाभी, बुआ -मामा, आदि सदस्य आते है। एकल परिवार मैं माता पिता व बच्चे आते है । यह परिवार ही होता है जहाँ बच्चे को अच्छे संस्कारों का बनाया जाता हैं । परिवार हमें सुरक्षा का एहसास महसूस कराता है, यह हमें जीवन में किसी के होने का एहसास दिलाता है जिसके साथ आप अपनी समस्याओं को साझा कर सकते हैं इत्यादि. यह दिन एक दूसरे के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी का भी एहसास दिलाता है

” प्यार और सहकार से भरा पूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग है”

परिवार दिवस को मनाने का प्रमुख कारण हैं जीवन में संयुक्त परिवार की अहमियत बताना है।आपसी सहयोग व सभी पुराने रीति रिवाजों को मनाने का तरीका संयुक्त परिवार से जीवन में होने वाली उन्नति के साथ, एकल परिवारों और अकेलेपन के नुकसान के प्रति युवाओं को जागरूक करना व छोटे बच्चे का अकेले पन को दूर करना भी है।हर व्यक्ति को अपने परिवार को मजबूत बनाना ही परिवार दिवस का मूल उद्देश्य है। जिससे युवा अपनी बुरी आदतों (धूम्रपान, जुआ) को छोड़कर एक सफल जीवन की शुरुआत कर सकें। सभी के साथ रहे व अपने बुजुर्गों को समझे व अच्छे संस्कारो को समझे ।

हर व्यक्ति का अपना परिवार होता है जहाँ पर रिश्ते पनपते है और अपनी सुगंध बिखरते है जो हमें हर दुखों में उभारने का काम करते है। परिवार की मजबूत नीव पर ही व्यक्ति का वर्तमान व भविष्य का ढांचा उत्पन्न होता है सामान्य परिवार झुग्गी झोपड़ी मे रहने वालेमे भी प्रतिभाये दिखाई देते है राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री भी सामान्य परिवार के ही थे।

परिवार दिवस की शुरुआत 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की वैश्विक समुदाय परिवारों को जोड़ने वाली पहल के रूप में और परिवारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने, परिवारों को प्रभावित करने वाले आर्थिक, जनसांख्यिकीय और सामाजिक प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देने के लिए की गई थी।साल 1996 में सबसे पहले इंटरनेशनल फैमिली डे यानि अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस (International Family Day) मनाया गया था। तब विश्व परिवार दिवस की थीम थी “परिवार: गरीबी और बेघरता के पहले पीड़ित” था।1996 के बाद से अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस को एक खास थीम के जरिए मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र ने भी विशेष थीम आधारित करने को लेकर इसकी अनुशंसा की. बता दें कि अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस 2020 (International Family Day 2020) का थीम ‘परिवार और जलवायु संबंध’ रखा गया है.

वर्ष 1996 के बाद से संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने एक विशेष आदर्श वाक्य पर ध्यान देने के लिए प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के जश्न के लिए एक थीम को निर्दिष्ट किया है। अधिकांश थीम बच्चों की शिक्षा, गरीबी, पारिवारिक संतुलन और सामाजिक मुद्दों को दुनिया भर के परिवारों की भलाई के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद करती है।

आधुनिक समाज में परिवारों का विघटन का कारण परिवार मे एक साथ रहने पर छोटे सदस्यों पर काम का ज्यादा भार पड़ना, बडो की अहंकार भावना या पुराने रीति रिवाज के अनुसार चलना् पैत्रिक संपत्ति के कारण आपसी मन मुटाव । परिवार दिवस का मुख्य उद्देश्य जीवन में संयुक्त परिवार की अहमियत बताना है व संयुक्त परिवार से जीवन में होने वाली उन्नति के साथ,हमे किसी भी प्रकार का भम नहीं होता एकल परिवारों और अकेलेपन के नुकसान के प्रति युवाओं को व बच्चों को सयुंक्त परिवार के फायदो के बारे मे बतना की दादा दादी के साथ पुराने किस्से व कहानियों को सुनने को मिलती हैं ।

विश्व परिवार दिवस के प्रतीक चिन्ह की बात करें तो यह एक हरे रंग का एक गोल घेरा है जिसके अंदर एक घर बना हुआ है जिसमें एक दिल बना हुआ है जो समाज का केंद्र यानि परिवार को दर्शाता है यानि परिवार के बिना समाज अधूरा है

परिवार वह होता हैं जहाँ सब अपने होते है।
समाज में पहचान परिवार के माध्यम से मिलती है इसलिए हर मायने में व्यक्ति के लिए उसका परिवार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। हमारा बचपन का प्रभाव हमारे पूरे जीवन भर.रहता हैं इसलिए हमारे लिए परिवार महत्वपूर्ण है क्योंकि परिवार हमारी पहली पहचान है, और हमारी पहली पाठशाला है ।

उत्तराखंड मे आज भी सयुंक्त परिवार तो कम हैं पर जितने भी छोटे परिवार रहते है वे सब मिल जुलकर आपस मे काम करते हैं जिस महिने धान रूपाई का काम होता है तो पूरे गांव वाले एक दिन एक का व दूसरे दिन दूसरों की धान रूपाई का कार्य करते है । इसी प्रकार शादी समारोह, या अन्य कार्यो के समय सभी बच्चे पानी लाने का व महिलाएं को सब्जियों को काटने, पूरी बेलने व पुरुषों का काम भी खाना बनाने, लकडिय़ों को काटकर लाना होता है।परिवार के कारण ही बच्चे सीखने की कला को जानते है परिवार वाले उन्हें समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहते है और वे अपनी मन्जिल को जरूर पाते है
सभी को परिवार के साथ मे रहकर समय व्यतीत करना चाहिए। यदि हम अपने घर परिवार से से दूर होते है तो हम फोन.से या इन्टरनेट के जरिए संपर्क करते है तो मन में सकून मिलता है । हमारी भारतीय संस्कृति की परंपराएँ सिर्फ कहने के लिए समृद्ध नहीं है बल्कि यह परिवार के सदस्यों के आपसी संबंधों को समृद्ध करती है। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया हैं
सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥

अथार्त …सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।

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